शुभ मुहूर्त का अशुभ सिद्ध होना


शुभ मुहूर्त के अशुभ सिद्ध होने के क्या कारण है? - Shubh muhurat ke ashubh siddh hone ke kya karan hai?

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 शुभ मुहूर्त  देखकर शुभ काम करना सनातन धर्म की धार्मिक प्रथा है। परन्तु बहुत से शुभ मुहूर्त मे किये गए कार्य अशुभ सिद्ध हो जाते हैं।

अनेकों अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं जहाँ विवाह , व्यापार, गृह प्रवेश , यात्रा आदि शुभ मुहूर्त विचार कर के किये जाते हैं फिर भी अशुभ फल मिलते हैं।

 इस लेख मे हम "शुभ मुहूर्त अशुभ क्यों सिद्ध होते हैं", के  कारणों पर चर्चा करेंगे। 

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 मुहूर्त क्या हैं ?

सनातन धर्म मे समय मापन की इकाई को मुहूर्त कहते हैं। पूरे दिन में कई मुहूर्त होते हैं।  

ऋषि मुनियों के अनुसार इनमे कुछ मुहूर्त शुभ एवं कुछ अशुभ होते हैं।

शुभ मुहूर्त मे आरम्भ किये गए काम शुभ फलदायी माने जाते हैं एवं अशुभ मुहूर्त मे किए गए काम अशुभ फल देने वाले होते हैं।

(wikipedia) 

 सनातन धर्म की क्या मान्यतायें हैं ?


सनातन धर्म अनुयायी जीवन के महत्वपूर्ण कार्य एवं संस्कार शुभ मुहूर्त मे ही करते हैं।

ज्योतिष पंचांगों मे तो हर कार्य को करने के मुहूर्त बताये जाते हैं। प्रत्येक दिन के कौन से घंटे शुभ हैं और वह शुभ घंटे यानि शुभ मुहूर्त मे कौन से कार्य करने शुभ होंगे यहाँ तक जानकारी दी जाती है।

जन्म से ले कर मरण तक के सारे संस्कारों के मुहूर्त चिन्हित हैं।  प्राचीन काल मे तो मुहूर्त और दिशा विचार कर के ही यात्रा शुरू की जाती थी। परन्तु आज इस का प्रचलन लगभग ख़त्म हो गया है।

अब मुहूर्त विचार; विवाह, जन्म उपरांत संस्कार , सनातन धार्मिक संस्कार जैसे यगोपवीत (जनेऊ), नए व्यापार की शुरुआत, नई साझेदारी की शुरुआत , व्यापार एवं जमीनी सौदे , नए घर मे प्रवेश आदि प्रचिलित हैं।

कुछ मुहूर्त सदा शुभ ही माने जाते हैं जैसे , प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त, अक्षय तृतीया , धनतेरस, नवरात्री आदि।

कुछ सदा ही अशुभ मुहूर्त माने जाते हैं, जैसे , पितृ पक्ष , कृष्णा पक्ष (कुछ कार्यों के लिए ), मृत्यु के समय पंचक योग हो , भद्रा काल मे जन्म, राहु काल आदि।

परन्तु अधिकांश संस्कार एवं सांसारिक कार्यों के लिए मुहूर्त विचार का विधान है और समाज मे यह अत्यधिक प्रचलित है।


शुभ मुहूर्त अशुभ क्यों सिद्ध होते हैं ?


 यह प्रश्न स्वाभाविक है कि जब शुभ मुहूर्त का विचार कर के इतने सारे शुभ कार्य किये जाते हैं तो फिर इतने सारे असफल कार्य क्यों हैं?
वैवाहिक संबंधों मे दुःख, नुकसान मे चल रहे व्यापार, टूटती साझेदारियां, राजनैतिक अस्थिरता, और बहुत कुछ ; सूची बहुत लम्बी है।

मेरा मत एवं अनुभव ;


प्रारब्ध बलवान है। जन्म लेने का प्रयोजन दिव्य है। इसका एक आंकलन जन्मपत्री की सही विवेचना से किया जा सकता है।


जब भी कोई भी काम किया जाए, तो यह आवश्यक है कि उस व्यक्ति की जन्मकुंडली मे उस काम से सम्बंधित योग , महादशा, अन्तर्दशा आदि, गोचर विचार करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अमुक काम का शुभ योग है , यदि है तो किस सीमा तक यह योग फलदायी है।

दूसरा पहलू है कि भविष्य मे आने वाली महादशा एवं अन्तर्दशा आदि शुभ फलदायी हैं या नहीं।

यदि यह सभी पहलू अनुकूल हैं तो ही ज्योतिषी को शुभ मुहूर्त विचार करना चाहिए। व्यक्ति को स्थिति साफ़ तौर पर बतानी चाहिए और यह भी साफ़ बताना चाहिए कि सिर्फ शुभ मुहूर्त से सब ठीक नहीं होगा।

उदाहरण के लिए , यदि विवाह विचार कर रहे हैं तो विवाह  सम्बन्ध कैसा रहेगा , वर वधु की मानसिक एवं शारीरिक स्थिति कैसी रहेगी, संतान सुख कैसा रहेगा , धनधान्य की स्थिति कैसी रहेगी, यह सब का विचार करना परम आवश्यक है।

उसी प्रकार नए व्यापार के विषय मे , चल अचल संपत्ति आदि के विषय मे भी विचार करना चाहिए।

अब प्रश्न उठता है कि शुभ मुहूर्त का क्या महत्त्व है ?


शुभ मुहूर्त शुभता मे वृद्धि करने का एक प्रयास है।

जैसे आप अच्छा खाना बनाये और फिर उसको विधिपूर्वक सुरुचि ढंग से परोंसें तो उस खाने के स्वाद मे बढ़ोतरी हो जाती है। खाने वाले व्यक्ति और परोसने वाले व्यक्ति, दोनों का ही मन आनंद से भर जाता है। उसी प्रकार शुभ कार्य शुभ मुहूर्त मे करने से शुभता मे वृद्धि होती है और सभी आनंदित होते हैं और इसका समाज पर भी शुभ एवं सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

परन्तु यदि भोजन स्वादिष्ट न बना हो और फिर भी सुरुचि ढंग परोसा जाये तो कुछ देर तो वह भोजन आकर्षण पैदा करेगा परन्तु एक बार चखे जाने के बाद उसका आकर्षण चला जायेगा।  और उसी प्रकार स्वादिष्ट भोजन सुरुचि पूर्ण तरीके से न परोसा जाये तो पहली नज़र मे वह उतना आकर्षक नहीं लगेगा परन्तु एक बार चखने के बाद वह अपनी सही गुणवत्ता का ज्ञान करा देगा।

उसी प्रकार शुभ मुहूर्त भी काम करता है। यह शुभता मे वृद्धि करता है परन्तु शुभता के अनुभव के लिए प्रारब्ध का बलवान होना आवश्यक है।

मेरे अनुभव मे , मैं ज्योतिष उपाय के लिए शुभ मुहूर्त का विचार कर के बताता हूँ विशेषतः रत्न धारण करने का समय जो मेरा अपना तरीका है।

व्यावहारिक तौर पर यदि हम अपने चारों तरफ देखें तो बहुत से काम सफलता पूर्वक हो रहे हैं और, वह बिना किसी शुभ मुहूर्त के विचार के ही शुरू कर दिए गए थे।  

तो शुभ मुहूर्त का विचार करना चाहिए या नहीं ?


यह निर्णय व्यक्ति एवं परिवार  का व्यक्तिगत निर्णय है।  यह जानते हुए कि शुभ मुहूर्त सिर्फ शुभता मे वृद्धि करता है , प्रारब्ध नहीं बदल सकता।  

  शुभेक्षा |

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Comments

  1. Bahut hi gyanvardhak sir ji...

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  2. सुन्दर और सटीक विवेचना

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  3. सुन्दर और सटीक विवेचना

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