ज्योतिष विद्या की कार्य प्रणाली क्या है ? (How does Astrology work?)


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jyotish+vidya+ki+karya+pranali+healer

 

इस लेख मे मैं संक्षेप मे ज्योतिष की कार्य प्रणाली पर अपने विचार लिख रहा हूँ और, यह विचार सनातन विचारधारा से  ही सम्बंधित है।

 इस ब्रह्माण्ड मे जो भी हमको हमारी भौतिक आँखों द्वारा दिखाई देता है और हमारी ज्ञाननेद्रियों (sense organs) द्वारा जाना समझा जा सकता है वह साकार (form) है। विज्ञानं साकार का ही अध्यन करता है। अतः जो भी हमारी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जाना समझा नहीं जा सकता उसको विज्ञानं नकार देता है।  यह सही है और तर्क विज्ञानं की कसौटी है।

 इस ब्रह्माण्ड मे एक अदृश्य लोक भी है जिसे ज्ञाननेंद्रियाँ जान या समझ नहीं सकती और यह निराकार (formless) है। शास्त्रों मे ईश्वर / परमात्मा को निराकार बताया गया है। निेराकार का अनुभव हम सब करते रहते हैं।  उदाहरण ; जन्म से पहले  हम कहाँ थे ? मरण के बाद हम कहाँ जाते हैं ?

सबसे बढ़ा निराकार का साक्ष्य स्वप्नों मे है।  हमे कई बार भविष्य विषयक सपने आते हैं और वह सही भी साबित हो जाते हैं।  सोचने वाली बात है कि  जो घटना घटी नहीं वह सपने मे कैसे दिख जाती है?

 निराकार को विज्ञान नहीं मानता क्योंकि इसको साक्ष्य द्वारा सिद्ध नहीं किया जा सकता।

 निराकार अध्यात्म (spiritual) का विषय है, अनुभव का विषय है , साक्ष्य स्वयं ही प्रस्तुत हो जाता है।  ऐसा अनुभव किया गया है कि, कोई भी घटना अदृश्य रूप मे पहले ही घट चुकी होती है। साकार मे वह बाद मे आती है जब हम उसका होना देखते हैं  और साक्षी बनते हैं। साकार रूप निराकार के बिना संभव ही नहीं है।

यदि ऐसा नहीं होता तो ऋषि मुनि त्रिकालदर्शी नहीं हो सकते थे। विश्व मे बहुत महान भविष्यवक्ता (Futurologist) हुए हैं, वह कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकते थे ।  सनातन धर्म मे भविष्य पुराण की रचना कई हज़ार वर्ष पूर्व हो चुकी थी और उसकी कई बाते आज तक सत्य सिद्ध हो चुकी हैं। यह सब  तथ्य (facts) निराकार के साकार रूपांतरण के साक्ष्य (evidence) है। हमारे सारे विचार भावनाएं आदि निराकार है।

 ज्योतिष विद्या निराकार को अध्यन  करके साकार रूप मे उसके स्वरुप को बताती है।

 निराकार अध्यात्म (spiritual) का विषय है, अनुभव का विषय है , साक्ष्य स्वयं ही प्रस्तुत हो जाता है।  ऐसा अनुभव किया गया है कि कोई भी घटना अदृश्य रूप मे पहले ही घट चुकी होती है। साकार मे वह बाद मे आती है जब हम उसका होना देखते हैं  और साक्षी बनते हैं। साकार रूप निराकार के बिना संभव ही नहीं है।

यदि ऐसा नहीं होता तो ऋषि मुनि त्रिकालदर्शी नहीं हो सकते थे। विश्व मे बहुत महान भविष्यवक्ता (Futurologist) हुए हैं, वह कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकते थे ।  सनातन धर्म मे भविष्य पुराण की रचना कई हज़ार वर्ष पूर्व हो चुकी थी और उसकी कई बाते आज तक सत्य सिद्ध हो चुकी हैं।

 ज्योतिष विद्या निराकार को अध्यन  करके साकार रूप मे उसके स्वरुप को बताती है। आत्मा (soul) निराकार है। आत्मा की कार्मिक यात्रा मे संचित कर्म (accumulated karma) जो प्रराब्ध बनाते हैं, उसी प्रारब्ध के ही परिणाम स्वरुप जन्म एवं जीवन काल  का आरम्भ होता है। हर जन्म मे आत्मा अपने प्रेम रूप को पहचानने की प्रक्रिया मे है। जन्म के समय की ग्रह स्थिति, जो की आत्मा द्वारा चुने गए कर्म के भोग को जो सुख और दुःख दोनों ही वर्गों  मे विभाजित किये जा सकते हैं, जन्म कुंडली के रूप मे अध्यन किये जाते  है।  अतः जन्म कुंडली की गृह स्थिति उस निराकार का अध्यन है जो जीवन काल मे साकार रूप मे आएगा।

 आगे के लेखों मे मैं कुंडली के अध्यन की सार्थकता एवं कर्म भोग पर प्रकाश डालूंगा। ज्योतिष उपाय की सार्थकता एवं उनकी  हमारे जीवन मे क्या भूमिका है, इस पर हम चर्चा करेंगे।

 सप्रेम।

अनुरोध

 संपर्क ; krisa.advisor@gmail.com

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